भारत गुलाम कैसे हुआ?
भारत के सपूत ने 200 साल तक लड़ कर भारत को आजादी दिलाई है। हम लोग जिसके लिए इतना कीमत चुकाए हैं, भारत को आजाद कराने के लिए वह भारत क्यों गुलाम हुआ। यह हमें जानना चाहिए कि कैसे अंग्रेजों ने हम लोगों को आपस में लड़ा कर हमारे अपने घर में ही गुलाम बना लिया।
अंग्रेजों ने भारत के राजा महाराजाओं को भ्रष्ट करके तथा धोखा देकर भारत को गुलाम बनाया। उसके बाद उन्होंने योजनाबद्ध तरीकों से भारत में भ्रष्टाचार, लालच, हिंसा को बढ़ावा दिया। और भारत को गुलाम बनाए रखने के लिए एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया। आज के समय में भ्रष्टाचार एक
वर्तमान मुद्दा बना है किंतु यह अंग्रेजो के समय से ही होते हुए हमारे नेताओं को विरासत में मिल गया है।
अंग्रेजों ने भारत को छोड़कर जाते–जाते गरीबी, हिंसा, जाती–धर्म के दलदल में धकेल कर चला गया। धर्मेंद्र गोड़ की पुस्तक “मैं अंग्रेजों का जासूस था” में भारत में नफरत फैलाने का साक्ष्य दिया गया है। जो अंग्रेजों ने पहले ही बना कर रखी थी, अंग्रेजों के आने से पहले भारत में भ्रष्टाचार तथा गरीबी कहीं भी नहीं मिलती थी। मुंबई के प्रसिद्ध प्रकाशक एवं व्यवसाय “शानबाग” थे जो अपने देहांत से पहले शानबाग ने भारतीयों पर बड़ा उपकार किया। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार “विल डूरा” की अत्यंत दुर्लभ एवं लुप्त प्राय पुस्तक “द केस फॉर इंडिया” का दुबारा से प्रकाशन किया। इस पुस्तक में उन्होंने भारत की लूट ही नहीं बल्कि भारत के प्राचीन संस्कारों चरित्र विद्या सम्पदा पर सबसे बड़े आक्रमण का वर्णन किया है। जिसमें उन्होंने बताया है कि भारत केवल एक राष्ट्र ही नहीं था, बल्कि सभ्यता संस्कृति एवं भाषा में विश्व का मातृ संस्था था। विश्व का कोई ऐसा श्रेष्ठता का स्थान नहीं था, जिसमें भारत ने सर्वोच्च स्थान हासिल न किया हो। भारत में वस्त्र आभूषण और जवाहरात का क्षेत्र हो, कविता साहित्य का क्षेत्र हो, बर्तनों और महान वास्तुशीला का क्षेत्र हो या फिर समुंद्री जहाज के निर्माण का चित्र हो। सभी में सर्वश्रेष्ठ था। भारत हर क्षेत्र में अपना प्रभाव रखता था।
भारत में अंग्रेजों का आगमन:–
भारत में लगभग 500 साल पहले अंग्रेज आया था। हिंदुस्तान को खोजा नहीं गया था हिंदुस्तान पहले से ही था। लेकिन यूरोपियन केवल हिंदुस्तान आने वाले अरब के व्यापारियों से हिंदुस्तान के बारे में सुना था। लेकिन यूरोपियन कभी हिंदुस्तान नहीं आए थे। इसीलिए यूरोपीयन के लिए भारत को खोजा गया। और हमलोगों को भी यह पढ़ाया गया कि हिंदुस्तान को खोजा गया। सन 20 मई 1498 को वास्कोडीगामा हिंदुस्तान आया था। 15वीं शताब्दी के दौरान यूरोप में दो देश बहुत शक्तिशाली थे स्पेन और पुर्तगाल, वास्कोडिगामा पुर्तगाल का लुटेरा डॉन और माफ़िया था। और स्पेन का ही ऐसा लुटेरा कोलंबस था। उस समय में भारत मसालों का उत्पादन करता था और वह महमूद गजनबी द्वारा सोमनाथ का मंदिर जो सोने का था उसकी लूट के बारे में सुना था। कोलंबस ने 1492 में अमेरिका पहुंच गया और वहां के वासी को रेड इंडियन कहा।
जब वास्कोडिगामा कालीकट में आया तो वहां का राजा झामोरिन था, उन्होंने वास्कोडिगामा को स्वागत किया। और राज्य में रहने के लिए स्थान दिया। जब वह भारत से वापस गया तो सात जहाज भर के सोना और मसाला ले गया। वह लगातार तीन बार हिंदुस्तान से सोना लूट कर ले गया। उससे पहले मोहम्मद गजनबी जैसा राजा और व्यापारियों सोना लूट कर ले गए। वास्कोडिगामा के आने के बाद पुर्तगाली लोग 70 से 80 वर्षों तक इस देश को खूब जमकर लूटा। पुर्तगाली चले गए इसके बाद फ्रांसिस आए, उन्होंने इस देश को खूब जमकर लूटा। उन्होंने भी 70 से 80 वर्षों तक राज्य किया। फिर डच आ गए हालैंड वाला। वह सोना लूट कर ले गए। उसके बाद अंग्रेज आ गए अंग्रेज हिंदुस्तान को लूटने के लिए ही नहीं बल्कि यहां के लोगों को गुलाम बनाकर राज्य करने के लिए। पुर्तगाली फ्रांसीसी और डच सभी लूटने के लिए आए थे। लेकिन अंग्रेज ने लूटने का तरीका बदल दिया। अन्य सभी ने सैनिक बंदूक तलवार इत्यादि लेकर आए, लेकिन अंग्रेज पहले ईस्ट इंडिया कंपनी फिर सैनिक बंदूक तोपें इत्यादि लेकर आए। गुजरात के सूरत में ईस्ट इंडिया कंपनी की सबसे पहली कोठी बनी। उस समय सूरत के लोगों को मालूम नहीं था कि हम जिस कपटी अंग्रेजों को कंपनी बनाने के लिए स्थान दे रहे हैं। वह अंग्रेज हमारा ही सर्वनाश कर देंगे।
उसके बाद वह अपना व्यापार शुरू किया और अपना व्यापार बढ़ाया। फिर 1612ईस्वी में सूरत के राजा की हत्या कराई। यह वही राजा था जिसने अंग्रेज को कंपनी बनाने के लिए जगह दिया था। उसके बाद सूरत के बंदरगाहों पर अंग्रेजों का शासन हो गया। फिर अंग्रेजों ने 1612 ईसवी में ही कोलकाता के नवाब, मद्रास के नवाब, दिल्ली के नवाब, आगरा के शासक और लखनऊ के शासक का हत्या करवा दिया। और ईस्ट इंडिया कंपनी के बहाने उस पूरे शहर पर कब्जा कर अपना झंडा फहराया। अंग्रेज ने 1750 तक पूरे देश को ईस्ट इंडिया कंपनी का गुलाम बना दिया। 1750 में सिराजुद्धोला जो बंगाल का नवाब था उसको यह पता चल गया कि अंग्रेज इस देश में व्यापार के बहाने शासन करना चाहते हैं। इस देश को गुलाम बनाने आए हैं फिर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया जो 1757 ईसवी का पलासी युद्ध के नाम से जाना जाता है। प्लासी के युद्ध में अंग्रेजो के पास केवल 300 सैनिक थे सिराजुद्धोला के पास 18000 सैनिक थे। सैनिकों की संख्या से ऐसा लगता है कि अंग्रेजों का बुराहाल हुआ होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ बड़ी मात्रा में सैनिक होने के बाद भी सिराजुद्धोला हार गया। इस युद्ध में जो अंग्रेज का सेनापति “रॉबर्ट क्लाइव” था यह जानता था कि हम लोग सिराजुद्धोला के सैनिकों से लड़ेंगे तो अवश्य मारे जाएंगे।
क्लाइव ने इस बात को बहुत बार ब्रिटिश पार्लियामेंट को चिट्ठी लिख कर कहा था क्लाइव की 2 चिट्ठियां है उस एक चिट्ठी में क्लाइव ने लिखा ” हम केवल 300 सैनिक हैं और सिराजुद्दोला के पास 18000 सैनिक हैं। हम युद्ध जीत नहीं सकते हैं तो जरूरी है कि हमारे पास और सिपाही भेजे जाए।“ जब रॉबर्ट क्लाइव को सेना की मदद नहीं दी गई तब उसने मीर जाफर जैसे गद्दार को जो सिराजुद्धोला का सेनापति था। बंगाल का नवाब बनाने का लालच दिया और युद्ध में उसकी सिपाहियों को बिना युद्ध लड़े समर्पण करवा लिया। इतिहास की जानकारी के अनुसार 23 जून 1757 को युद्ध प्रारंभ होने के 40 मिनट के अंदर 18000 सैनिकों ने मीर जाफर के कहने पर अंग्रेजो के 300 सैनिकों के सामने समर्पण कर दिया।
अंग्रेज अपने 300 सैनिक की मदद से हिंदुस्तान के 18000 सैनिकों को बंदी बना लिया। और कोलकाता के फोर्ट विलियम में 18000 सैनिकों को बंदी बनाकर कर कैद कर दिया। 10 दिनों तक उस भारतीय सैनिक को भूखा रखकर 11वीं दिन सबकी हत्या कर दी। उसके बाद मीर जाफर और रॉबर्ट क्लाइव ने मुर्शिदाबाद में सिराजुद्दोला की हत्या कराई। उस समय मुर्शिदाबाद बंगाल का राजधानी हुआ करता था। इस तरह जो ईस्ट इंडिया कंपनी को भगाने के लिए शत्रुता करता था उसकी हत्या करवा देता था। जो ईस्ट इंडिया कंपनी का तलवा चाटता था मीर जाफर की तरह उसे नवाब बना दिया जाता था। इसी तरह आज के समय में मीर जाफर की तरह हजारों मिर जाफर है जो हिंदुस्तान को गुलाम बनाने में लगे हुए हैं। आज हिंदुस्तान का जो नेता प्रधानमंत्री /मुख्यमंत्री बनता है। वह विदेशों की कंपनी को स्वागत करता है। और कहता है कि तुम मेरे लिए इतना ही करना कि कुर्सी दे देना और पैसा दे देना। ऐसे में आप सोच सकते हैं कि हिंदुस्तान का क्या होगा।
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना और विस्तार
लंदन की कुछ व्यापारियों ने 1588 में ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत किया। लंदन के कुछ व्यापारियों ने रानी एलिजाबेथ से हिंद महासागर में व्यापार करने की इजाजत मांगी। जब ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत हुई, तो कुछ दिनों में कंपनी दिवालिया घोषित होगी थी। क्योंकि यह पैसा नहीं कमा पाई थी। जब लंदन के व्यापारी पहली बार समुद्री यात्रा के लिए निकले थे तो वह अरब सागर से ही लौट गए थे। फिर 1596 में तीन पानी का जहाज लेकर आए, और मार्ग में हीं तूफान की चपेट में आ गए। ऐसी असफलताओं को देखकर रानी एलिजाबेथ व्यापार के लिए धन देने से मना कर दिया। उसके बाद व्यापारीयों ने जीद किया और उसको मना लिया।
फिर 31 दिसंबर 1600 को लंदन से भारत व्यापार के लिए रवाना हुआ। इस व्यापार के लिए “जेम्स लंकैस्टर” ने कमान संभाली थी। वह पूर्वी देशों से व्यापार करते हुए 1608 में सूरत के बंदरगाहों पर पहुंच गया। वह अगले 2 वर्षों में दक्षिण भारत के बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित मछलीपट्टम में अपना पहला कारखाना बैठाया। किंतु वह नहीं चल पाया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार के बहाने विश्व के लगभग सभी देशों को लूट चुका था। लेकिन हिंदुस्तान से जो पैसा कमाए उतना किसी देश से नहीं। अंग्रेजों ने मछलीपट्टनम के कारखानों के असफलता के बाद सूरत में ही कारखाना लगाया। सूरत में अत्यधिक व्यापार होता था जिसके कारण सूरत धनवान शहर माना जाता था। उस समय भारत कपड़ा स्टील मसालों का बड़ा उत्पादक था। यहां से वस्तुएं खरीदने पर उसके बराबर सोना लेता था। इसीलिए ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार के बहाने कारखाना लगाना चाहा।
भारत का बादशाह उस समय जहांगीर था, अंग्रेज अफसर “थॉमस रॉ” ने मुगल सम्राट को अंग्रेजी भाषा में पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने भारत में व्यापार के लिए ट्रेड लाइसेंस मांगा था। उस समय Trade शब्द का अर्थ “लूटमार” होता था। जहांगीर अंग्रेजी भाषा नहीं पढ़ सकते थे। इसीलिए उसने एक दरबारी को पत्र पढ़ने के लिए दिया। उस दरबारी को अंग्रेज ने अपने तरफ मिला लिया था और उसे पूरा पाठ पढ़ा कर भेजा था। उस दरबारी की विश्वसनीयता पर ईस्ट इंडिया कंपनी के ट्रेड पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया। इसतरह अंग्रेज को जहांगीर से व्यापार करने के लिए छूट मिल गया। फिर वह जहां भी जाते बादशाह का हस्ताक्षर पत्र को दिखा कर लूटमार करते थे। उसका लूटमार का ऐसा तरीका होता था की भारत की भोला–भाला जनता उसकी योजनाओं को भाप नहीं पाती थी। उन्होंने पहले लगभग 900 सोने से भरा जहाज सूरत से लंदन भेजा। इस तरह सोने की चिड़ियां को लूटने लगा। इस तरह अंग्रेज भारत को लूटते हुए अपना सत्ता जमाने लगा। भारत के राजाओं ने इसका विरोध किया और युद्ध लड़ा। लेकिन उन सभी को उसने धोखा चलाकी से उसके अपने आदमियों द्वारा हत्या करवा दिया।
उस समय बंगाल बहुत बड़ा राज्य था जिसके राजा का नाम सिराजुद्दोला था। जब 1757 में राबर्ट क्लाइव ने बंगाल पर सत्ता जमाना चाहा। लेकिन राबर्ट क्लाइव के पास केवल 300 सैनिक थे और सिराजुद्धोला के पास 18000 सैनिक थे। इसीलिए उसने युद्ध के लिए रणनीति बनाई और उसने सिराजुद्धोला के सेनापति “मीर जाफर” को धन और सत्ता का लालच देकर अपने तरफ कर लिया। मीर जाफर ने अपनी सेना को युद्ध में ले लड़ें बिना ही समर्पण करने को कहा। उसके बाद सभी सैनिकों को बंदी बना लिया। और रॉबर्ट क्लाइव ने सिराजुद्धोल को मरवा दिया। मीर जाफर सिंहासन पर बैठ गया।
इस तरह अंग्रेज “मीर जाफर” को बंगाल का गर्वनर नियुक्त कर भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी सत्ता जमा लिया।

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