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भारत का आत्मनिर्भरता।India's self-reliance।

स्वाधीनता के 75 वर्ष और भविष्य की चुनौतियाँ

आज हमलोग अपनी इच्छा के मुताबिक काम करने के लिए स्वतंत्र है, जब भारत आजादी की लड़ाई लड़ कर स्वाधीनता प्राप्त किया था, उस समय भारत की हालत इतनी खराब थी, की किसी को पूरी तरह भोजन नहीं मिल पाता था। पहनने के लिए पूरे कपड़े पर्याप्त नहीं थे। भारतीय वासियों का आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। क्योंकि अंग्रेजों द्वारा भारत के लोगों को जबरन काम करवाया जाता, किसानों को भारी कर देना पड़ता। जिसके कारण किसानों की हालत और खराब हो गई, उस समय भारत की अर्थव्यवस्था बहुत ही खराब थी। उसके पश्चात भारत अपनी हालात को सुधारने लगा।




और अब भारत दुनिया का स्वतंत्र शक्तिशाली और विकासशील देश बन गया है, अपना विकाश स्वाधीनता पूर्वक करता है। अब भारत स्वाधीनता का 75 वर्ष मानने जा रहा हैं। स्वाधीनता का अर्थ होता है, अपने इच्छा, भावना और कामों को बिना किसी के प्रभाव से खुद के नियंत्रण में करना। लोग अपने धर्म, जाती, क्षेत्र एवं भेष-भूषा में स्वतंत्रता पूर्वक रहते हैं। आज हमलोग विकसित हो रहे हैं। अपने अधिकार, संपप्ति पर अपना हक जमाते हैं, अभी किसी अंग्रेजों का प्रभाव नहीं है, लेकिन हमलोग अंग्रेजों की वस्तुएं उसके भेष-भूषा के प्रभाव में हैं। उसके दबाव में अभी भी है, ऐसा नहीं है की हमें दुनिया के साथ नहीं चलना चाहिए। परिवर्तन ही संसार का नियम है, हमें उसके वस्तुओं का आदि नहीं होना हैं। हम अपने वस्तुओं और अपनी रहन सहन को महत्व न देकर बाहरी रहन सहन को महत्व देते हैं।






और विदेशों की आधुनिक वस्तुओं का अपने देशों में निर्माण न करके उससे खरीदते हैं। हमारे बाजारों में बाहरी सामानों का खूब प्रभाव हैं, जब तक भारत अपना खुद उपयोगी सामानों का निर्माण नहीं करता तब तक भारत को विकाश होने का सपना अधूरा ही रहेगा। हमारे देश के उद्योग को बढ़ाना चाहिए, और आवश्यक सामग्री का निर्माण करना चाहिए।

विदेश की अनावश्यक रहन सहन को महत्व नहीं देना चाहिए जो हमारे लोगों के लिए आवश्यकता और जो हमारी विकाश में मदद करता है, उन्हें निर्माण और वृद्धि करना चाहिए।




हम लोग अपनी भाषा में भी अंग्रेजी भाषा को सम्मिलित कर रखे है, जो अंग्रेजी के प्रभाव को दिखाता है। हम लोग उसके भाषा के प्रभाव में है, मानसिक रूप से हम लोग स्वाधीन नही हैं। अंग्रेजी भाषा, वस्तु और उसके रहन सहन के आदि हो गए हैं।







             पूरी दुनिया से मिलकर रहने के लिए अच्छे संबंध स्थापित करने के लिए अंग्रेजी भाषा को जानना तो हैं, लेकिन अपनी मातृभाषा का ज्ञान होना भी जरूरी है। हमें अपने वस्तुओं का भी महत्व देना चाहिए, तो इन सब के लिए हमें दूसरों के विचारों के प्रभाव में न आकार आज के समय में जो उपयोगी है, उसको चुनना चाहिए। ऐसा कह सकते है की मोतियों में से हीरे को चुनना चहिए, नहीं तो ऐसा करने पर हमलोग अपने संस्कृति, अपनी विकाश को खो देंगे। तब वैसा ही हाल होगा, जैसे जब कोई चिड़िया अपने घोंसला छोड़कर किसी दूसरे जंगल में घोंसला बना कर रहने लगती है और वापस आने पर पुराने घोंसला का कोई अस्तित्व नहीं रहता है। उसी तरह हमलेगों का हो सकता है। क्योंकि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने "वंगदर्शन" में कहा है, "जो विज्ञान स्वदेशी होने पर हमारा दास होता है, वह विदेशी होने के कारण हमारा प्रभु बन बैठता है" यह उसी तरह होगा जो हम किसी अतिथि के घर उसके वस्तुओं का उपयोग करते हैं, उस पर अपना कोई अधिकार नहीं होता।








भारत के भविष्य की मुख्य चुनौतियां आत्मनिर्भर होना और गरीबी से मुक्ति पाना होगा। भारत को स्वाधीनता के लिए भविष्य में आत्मनिर्भर होना बहुत ही जरूरी है, जब कोरोना महामारी फैली तो सबको किसी न किसी तरह नुकसान हुआ, तब अहसास हुआ कि आत्मनिर्भर होना कितना जरूरी है। आत्मनिर्भर बनाने के लिए आजादी से पहले ही महात्मा गांधी ने अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार किया था। उन्होंने आत्मनिर्भर के लिए चरखा चलाई और कपड़ों के उत्पादन का बढ़ावा दिया। उन्होंने जेल में भी चरखा चलाना नहीं छोड़ा। हमारे राज्यों के अधिकांश लोग गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहा है, उनको शिक्षित करना चाहिए। उसे अपने विचारों, व्यवशायों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करना चाहिए, इन सब में किसान, मत्स्य पालन करने वाला, कुम्हार आदि लोग ही आत्मनिर्भर है। वह भी छोटे पैमाने पर व्यवसाय करते है। 






एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था, "गरीबी शरीर में एक कैंसर की भांति होता है, जो धीरे-धीरे पुरे शरीर को प्रभावित करता है। उसी तरह गरीबी पूरे देश के विकाश को भी प्रभावित करता है।" भारत में उद्योगों की भी कमी है। किसी भी वस्तु को बनाने के लिए छोटे-छोटे उपकरणों की जरूरत होती है, जिसकी उत्पाद करने वाली कंपनी भारत में एक-दो होती है और उस उपकरणों की कीमत भी बहुत होती है, चीन और दूसरे देशों से खरीदने पर वहाँ की वस्तुएं सस्ती पड़ती है। जिसके कारण हमारे देश की कंपनी दूसरे देशों पर निर्भर रहता है। यदि भारत में उद्योगों की संख्या बढ़ेगी, तो एक-दूसरे कंपनी के बीच कंपटीशन बढ़ेगी और उपकरणों की कीमत घटेगी। फिर किसी वस्तु को दूसरे देशों से खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे रोजगार के अधिक अवसर पैदा होंगे। देश में स्किल बढ़ेगी। विदेशों से कम आयात होगा, और निर्यात ज्यादा कर






सकेगा। जिससे किसी देश पर निर्भरता नहीं रहेगी, और स्वाधीनता की परिभाषा को पूरा करेगा। इसका प्रभाव तब दिखा, जब कोरोना महामारी से देश गुजर रहा था। तब हमें अपने आत्मनिर्भर होने का अवसर दिखा और हमने आत्मनिर्भर हो कर अपने देश में ही वस्तुओं का निर्माण शुरू कर दिया। पहले भारत दूसरे देशों से वस्तुएं मांगता था, फिर अपने देश में ही बनाना शुरू कर दिया, जिससे दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ा।






पहले पीपीई किट, वेंटीलेटर भारत में नहीं बनाया जाता था। इसे दूसरे देशों से मंगाया जाता था, फिर कोरॉना महामारी के कारण इसे अपने देश में ही बनाना शुरू कर दिया गया। जिससे भारत में इतना उत्पादन होने लगा की भारत पीपीई किट बनाने वाला दूसरा देश बन गया, और पहला देश चीन रहा। भारत के लिए यह बड़ी बात है। फिर किसी दूसरे देशों पर • निर्भर नहीं रहना पड़ा, पीपीई किट भारत दूसरे देशों को निर्यात करने लगा। इसके बाद ही जब ऑक्सीजन की सप्लाई कम पड़ गई, तब विभिन्न देशों से ऑक्सीजन आयात करना पड़ा था। फिर भारत को ऑक्सीजन सप्लाई ज्यादा करनी पड़ीं, बंद ऑक्सीजन प्लांट को दुबारा शुरू कराया गया और फिर ऑक्सीजन सप्लाई को बढ़ाया गया। भारत को आत्मनिर्भर होना ही पूर्ण स्वाधीनता कहलाएगा।

तब महात्मा गांधी जी का आत्मनिर्भर होने का और भारत को विकाश होने का सपना साकार होगा, यह भारत की मुख्य चुनौतियां है।

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