प्राणायाम क्या हैं?
प्राणायाम प्राण± आयाम से मिलकर बना है, प्राण का अर्थ जीवन और आयाम का अर्थ द्वार से होता हैं, अतः प्राणायाम स्वस्थ जीवन जीने का द्वार हैं।
प्राणायाम का अर्थ हैं अपनी प्राणवायु को ठीक करना अतः श्वास के द्वारा अपनी प्राणवायु को बढ़ाना जिससे फेफड़े की क्षमता बढ़े और शरीर में ज्यादा प्राणवायु जा सके। क्योंकि शरीर में जितनी ज्यादा ऑक्सीजन (प्राणवायु) जाएगी उतनी ज्यादा कोशिका को ऑक्सीजन मिलती हैं और शरीर ताकतवर एवं स्वस्थ्य महसूस करेगा। योग/ प्राणायाम करने से हमारे शरीर को बहुत सारी फायदे होते हैं। जिससे बड़ी–बड़ी खतरनाक बीमारियाँ जैसे मधुमेह, हार्टअटैक, कैंसर, अस्थमा आदि जैसे बीमारी से बचा जा सकता है। यदि ऐसी बीमारी किसी को होती हैं और प्राणायाम करना शुरू कर देता है तो धीरे–धीरे ऐसी बीमारियाँ को ठीक किया जा सकता है इसे शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास होने लगता हैं।
योग के आठ अंग होते हैं जो अष्टांग योग कहलाते है, प्राणायाम इसी अष्टांग योग का ही एक अंग है। योग के आठ निम्न प्रकार हैं— 1.यम 2.नियम 3.आसन 4.प्राणायाम 5.प्रत्याहार 6.धारण 7.ध्यान 8.समाधि।
प्राणायाम के नियम:—
प्राणायाम करने के कुछ आसान नियम होते हैं, जिससे आप अच्छे से प्राणायाम कर सके। और उसका पूरा लाभ मिले।
• जहाँ प्राणायाम करें वहाँ की स्थान साफ़ रखे। और भूमि पर आसन बिछा लेना चाहिए।
• अपने मन बुद्धि के सारे विकारों को हटा देना चाहिए।
• आप बैठने के मुद्रा में ऐसे बैठे जिसे आपको सहूलियत हो आप अपने शरीर को पूरे भाग को ढीली रखें।
• सिर और पीठ बिल्कुल सीधी रखें।
• साँस पूरी लें और स्वास को पूरी तरह छोड़े। जितना हो सके उतनी पूरी मात्रा में श्वास लें।
• हर साँस लेने के दौरान ॐ का उच्चारण करें या फिर मधुमक्खी की आवाज निकाल सकते हैं।
प्राणायाम कैसे करें।
प्राणायाम सुबह को करना अच्छा माना जाता है, सूर्योदय के समय नित्यकर्मों से निवृत्त हो कर एक अच्छी जगह पर आसन बना कर बैठ जाए। प्राणायाम करने के दौरान किसी प्रकार का समस्या होने पर इसे न करें। हो सके तो डॉक्टर से मिलें।
प्राणायाम के प्रकार(Types of Pranayama):–
प्राणायाम 13 प्रकार के होते हैं जो निम्नवत है।
1. भस्त्रिका प्राणायाम
2. अनुलोम–विलोम प्राणायाम
3. कपालभाति प्राणायाम
4. बाह्य प्राणायाम
5. भ्रामरी प्राणायाम
6. उद्गीथ प्राणायाम
7. प्रणव प्राणायाम
8. अग्निसार क्रिया
9. उज्जायी प्राणायाम
10. सीत्कारी प्राणायाम
11. शीतली प्राणायाम
12. चंद्रभेदी प्राणायाम
13. सूर्यभेदी प्राणायाम
1. भस्त्रिका प्राणायाम:— भस्त्रिका का मतलब है धौंकनी। धौंकन। धौंकनी यानी श्वास की प्रक्रिया को जल्दी– जल्दी करना ही भस्त्रिका प्राणायाम कहलाता है। पद्मासन या फिर सुखासन में बैठ जाएं। अपने शरीर के कमर, गर्दन एवं रीढ़ को सीधा रखे, और बिल्कुल स्थिर रहें। इसके बाद अपने दोनों नासिका छिद्र से आवाज करते हुए श्वास भरें। फिर ऐसे ही श्वास को बाहर छोड़े। अब इसी प्रक्रिया को तेजी से करें अर्थात तेजी से सांस ले और तेजी से श्वास छोड़ें, इसे ही भत्रिका प्राणायाम कहते हैं। इस समय आखें बंद कर लगातार करते रहें।
लाभ— इससे मोटापा दूर होती हैं, शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक बढ़ती है और कार्बन डाइऑक्साइड शरीर से बाहर निकलती हैं। इस प्रक्रिया से रक्त की सफाई होती हैं दमा, टीवी और सांसों के रोग ठीक होते हैं। शरीर के सभी अंगों तक रक्त का संचार भली–भाती होता हैं। इससे हमारा हृदय सशक्त होता हैं, हृदय और फेफड़ा से संबंधित रोगों में कमी आती हैं, इससे मेधा शक्ति बढ़ती हैं और मस्तिष्क संबंधित सभी बीमारियां दूर होती हैं। पार्किनसन, पैरालिसिस, लूलापन इत्यादि स्नायुओं से संबंधित सभी बीमारियों को ठीक करता है।
2. अनुलोम–विलोम प्राणायाम– अनुलोम का मतलब है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। यहां पर उल्टा का अर्थ है नासिका का बाया छिद्र और सीधा का अर्थ नासिका का डायन छिद्र। प्राणायाम करते समय नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचते हैं और बाएं नाक से सांस को छोड़ते हैं। इसितरह नाक के बाई छिद्र से साँस लेते हैं और नाक के दाहिने छिद्र से साँस को बाहर निकलते हैं इसी को लगातार करते रहने से अनुलोम विलोम प्राणायाम बनता है। इस प्राणायाम को नाड़ी शोधक प्राणायाम भी कहते हैं।
लाभ– फेफड़ा और हृदय शक्तिशाली होते है, सर्दी, जुकाम व दमा की समस्याएं ठीक होती हैं। पाचन शक्ति तंदुरुस्त रहता है तनाव और चिंता को कम करता हैं। पूरे शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति होते है,। जिससे शरीर ठीक से कार्य करती है।
3. कपालभाती प्राणायाम– कपालभाती योग में षटकर्म (हठ योग) की एक विधि है कपालभाती में कपाल का अर्थ है माथा या ललाट, और भाती का मतलब तेज हैं। इस प्राणायाम से शरीर ऊर्जावान होता हैं कपालभाती प्राणायाम करने के लिए किसी भी आसन में बैठ कर अपने शरीर को सीधा रखते हुए। नाक के दोनों छिद्रों से सांस को अंदर खींचते हुए, पेट को यथा संभव बाहर आने दे। उसके तुरंत बाद नाक के दोनों छिद्रों से साँस को बाहर आने दे, उसके साथ पेट को भी अंदर की और करें। यहीं प्रक्रिया बार–बार 5–30 मिनट तक करें।
लाभ— इसके करने से पेट की चर्बी कम होती है पेट संबंधित समस्याएं ठीक होती हैं। बालों की समस्याओं से छुटकारा होती हैं चेहरे पर बने झुरियां और आंख के निचले भाग में बने छाया दूर होती है आंखों की रोशनी चेहरे की चमक बढ़ जाती है।
4. बाह्य प्राणायाम:– बाह्य प्राणायाम करने के लिए किसी भी आसन में बैठ कर, साँस को पूरी तरह बाहर निकलकर रोके रखने के बाद तीन कार्य करते हैं जिसे बांध लगाना कहते है। पहला जालंधर बन्ध को सिकोड़ते हुए ठोडी को छाती से सटा कर रखना हैं दूसरा कार्य उड़ड्यान बन्ध जिसमें पेट को पूरी तरह अंदर पीठ की ओर खींचना है। तीसरा कार्य मूलबंध जिसमे शरीर के मल द्वार को ऊपर की तरफ खींचना है इसितरह इस प्रक्रिया को लगातार करना है। इसे ही बाह्य प्राणायाम कहते है।
लाभ– इससे पेशाब और धातु से संबंधित सभी समस्याएं ठीक हो जाती हैं कब्ज, एसिडिटी, गैस जैसे समस्या ठीक होती हैं, मन की एकाग्रता बढ़ती है बांझपन की समस्याएं ठीक हो सकती हैं।
5. भ्रामरी प्राणायाम:– अपने दोनों हाथ के अंगूठे से अपने दोनों कान को पूरी तरह से बंद कर ले, उसके बाद दोनों हाथ के संकेतिका (Index finger) और माध्यम उंगली(medial finger) को माथे पर रखे और बाकी अनामिका और कनिष्ठा उंगली से आखें बंद कर के रखें। फिर नाक से लंबी सांस लेते हुए ॐ मंत्र या भंवरे जैसा आवाज निकालना है।
लाभ– मानसिक शांति, मानसिक तनाव दूर होते है। नई ऊर्जा का संचार होता है, मानसिक एकाग्रता बढ़ती है। सरदर्द, माइग्रेन इत्यादि रोगों के लिए यह उपयोगी है इसे नियमित रूप से करने पर ब्लडप्रेशर, डिप्रेशन से छुटकारा मिलती है। काम वासना एवं क्रोध को शांत करता हैं।
6. उद्गीथा प्राणायाम:– उद्गीथ प्राणायाम किसीभी आसन में बैठकर नाक से लम्बी सांस अंदर खींचे। और धीरे—धीरे पूरी सांस को 10–15सेकेंड का समय लगाकर ॐ का जाप करते हुए बाहर निकलें।
लाभ– मन और मस्तिष्क की शांति और एकाग्रता बढ़ती है पॉजिटिव एनर्जी तैयार करता है सायकिक पेशेंट्स को फायदा होता है, मायग्रेन पेन, डिप्रेशन और मस्तिष्क संबंधित समस्यां से ठीक होती हैं। शारीरिक एवं मानसिक कार्य करने की क्षमता बढ़ती है।
7. प्रणव प्राणायाम:– ध्यान मुद्रा में बैठ जाए, उसके बाद आंख बंद करके गहरी सांस लेते हुए, मन में ॐ का उच्चारण करें।
लाभ– सकारात्मक ऊर्जा का संचार और स्मरण शक्ति बढ़ती है, शारीरिक एवं मानसिक क्षमता बढ़ती है। चिंता, भय, घबराहठ, डिप्रेशन और ब्लडप्रेशर इत्यादि की समस्या दूर करती है।
8. अग्निसार क्रिया: अग्निसार प्राणायाम करने के लिए सिद्धासन, सुखासन, पद्मासन में बैठकर सांस को पूरी तरह बाहर निकलकर रोके रहने के बाद पेट को आगे और पीछे ले जाना हैं यही प्रक्रिया बार–बार दोहराना हैं।
लाभ– इस प्रक्रिया को नियमित करने से पेट रोग कब्ज, एसिडिटी, गैस इत्यादि समस्या समाप्त होती है। धातु, पेशाब से संबंधित सभी रोग खत्म हो जाते हैं।
9. उज्जयी प्राणायाम:– गले को पूरा सिकोड़ कर ठोड़ी को छाती से सटाते हुए गले से गहरी सांस खींच कर यथा शक्ति सांस को रोके रखें। फिर जब सांस को छोड़ना हो तो दाई नाक को बंद करके बायी नाक से सांस को छोड़े। अच्छी तरह अभ्यास होने के बाद 9–10 बार इसका अभ्यास करें।
लाभ– इससे अनिंद्रा, मानसिक तनाव कम होती है, गले में रोग या जमें हुए बलगम/कफ को खत्म करता हैं। तुतलाना, हकलाना इत्यादि शिकायत भी दूर होती हैं, टी.बी.(क्षय रोग) में भी बहुत लाभकारी है।
10. सीत्कारी प्राणायाम:– सीत्कारी प्राणायाम को सीत्कार प्राणायाम भी कहते हैं। इस प्राणायाम को करते समय “सीत–सित” की आवाज निकलती हैं, इसीलिए इसे सीत्कारी प्राणायाम कहते हैं। इस प्राणायाम में जिव्हा को तालु से सटा कर दोनों जबड़ों को बंद करे। अब मूंह को थोड़ा–सा खोलें और मूंह से स्वाद को भीतर खींचकर रखें। फिर जब स्वास को छोड़ना हो तो नाक के मध्य से हवा को निकलें। इस प्रक्रिया को सीत्कारी प्राणायाम कहते हैं।
लाभ– ज्यादा पसीना आने की शिकायत से आराम मिलता है, शरीर की गर्मी को कम करता है। शरीर को शीतलता प्रदान करती हैं, चेहरे का सौंदर्य बढ़ता है मूंह संबंधित (दांत, गला, नाक और कान) रोगों में उपयोगी है।
11. शीतली प्राणायाम:– शीतली प्राणायाम नाम से ही पता चलता है की यह प्राणायाम शीतल प्रदान करने वाली होगी। यह शरीर को सीत्कारी प्राणायाम के भाती तापमान को कम करती हैं। ज्ञान या ध्यान मुद्रा में बैठ कर अपने जीभ को “o” आकार बनाते हुए सांस को अंदर खींचे। और जलांधर बंध बनाकर कुछ देर तक सांस को अंदर रखते हुए नासिका छिद्र से बाहर निकालें। इसिप्रकार इस प्राणायाम को 10–15 बार करें।
लाभ– मानसिक उत्तेजना कम करता है, पेट की गर्मी अतिरिक्त जलन को ठंडक पहुंचाती हैं, चेहरों का सौंदर्य निखर्ता हैं।
12. चंद्रभेदी प्राणायाम:– चंद्रभेदी प्राणायाम करने के लिए ध्यान या ज्ञान मुद्रा में बैठ जाए और उसके बाद दाहिने हाथ के अंगूठे से दाई भाग का नाक बंद कर बाई नाक से लंबी सांस लें। सांस को जितना हो सके रोके रखने के बाद दाईं नासिका छिद्र से स्वास को धीरे–धीरे छोड़ें, इसी प्रकार कम से कम 10–15 बार करें।
लाभ– इस प्राणायाम को करने से भी मानसिक तनाव और थकान दूर होती है, हृदय रोगों में यह प्राणायाम बहुत ही लाभदायक होती है। फेफड़ों की समस्यां दूर होती है, शरीर तंदुरुस्त रहता है।
13. सूर्यभेदी प्राणायाम:– यह प्राणायाम चंद्रभेद प्राणायाम का ठीक उल्टा है, सबसे पहले ज्ञान या ध्यान मुद्रा में बैठ जाए उसके बाद अपने बाएं हाथ के अंगूठे से बाएं ओर की नासिका छिद्र को बंद करके दाएं नासिका छिद्र से लंबी सांस लें। दाईं हाथ को ध्यान मुद्रा में ही रखें। जितनी देर हो सके स्वास को अंदर रखें और बाई नाक से आस्ते आस्त्ते स्वास को बाहर निकाला दें। इस प्रकार सूर्यभेदी प्राणायाम बनता है, इसे भी 10–15 बार करें।
लाभ– हृदय रोग को ठीक करता है फेफड़ों को तंदुरुस्त रखता है। चेहरे का सौंदर्य बढ़ता है, डिप्रेशन एवं मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
अपने शरीर को तंदुरुस्त रखने के लिए प्रातः काल प्राणायाम जरूर करें।

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