धीरूभाई अंबानी का परिचय
धीरजलाल हीरालाल अंबानी जिन्हें धीरूभाई अंबानी कहा जाता हैं। भारत के एक चिथरे से धनी व्यवशायिक बनने की कहानी जिन्होंने मुंबई में रिलायंस उद्योग की स्थापना मात्र 15000 रूपये से चचेरे भाई के साथ किया। ये उपलब्धि अति दमनकारी व्यवसायिक वातावरण में प्राप्त किया। जब लाइसेंस राज/परमिट राज ने भारतीयों को दबा रहा था, 1947–1990 तक भारतीय व्यवसाय का गला घोट दिया था। लाइसेंस राज या परमिट राज यह था कि किसी प्राइवेट कंपनियों द्वारा कुछ भी उत्पादन से पहले 80 सरकारी एजेंसियों से सहमति लेना पड़ता था, जो यह सरकारी एजेंसियां उन्हीं को लाइसेंस देता था जो कंपनियां उनके लाभ के लिए होता था। और यदि लाइसेंस दे भी दिया जाता था तो सरकार उत्पादन को विनियमित करती थी। जो भारत में ब्रिटिश शासन को दर्शाता था। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने इसका कड़ा विरोध किया और इसके विरोध के लिए स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की। यह व्यवस्था धीरूभाई अंबानी के सामने प्रतियोगिता का कोई आसार नहीं छोड़ा, धीरूभाई अंबानी ने 1977 में कंपनी रिलायंस को सार्वजनिक क्षेत्र में सम्मिलित किया और 2007 तक संयुक्त धनराशि 100 अरब डॉलर हो चुकी थी।
| DHIRUBHAI AMBANI |
प्रारंभिक जीवन:—
धीरजलाल हीरालाल अंबानी का जन्म 28 दिसंबर 1933 को गुजरात के जूनागढ़ चोरवाड़ में हुआ था, उनकी माता का नाम “जमनाबेन” थी। जो एक घरेलू महिला थी और उनके पिता हीराचंद गोर्धन भाई अंबानी एक टीचर थे। उनका जन्म बहुत ही सामान्य “मेधा” परिवार में हुआ था, जो समाजिक—धार्मिक समूह से संबंध रखता था। धीरूभाई अंबानी दो भाई रमणिकलाल अंबानी और नटवरलाल अंबानी थे, और दो बहन त्रिलोचना बेन, जसुमति बेन थे। वे एक साधारण शिक्षक के दूसरे बेटे थे। वे अपने इतने बड़े परिवार का लालन–पालन करने के लिए, धीरूभाई अंबानी को हाई स्कूल की अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। और अपने घर को चलाने के लिए अपने पिता के साथ भजिया पकौड़ा इत्यादि बेचने जाया करता था। वे गिरनार की पहाड़ियों पर आने वाले तीर्थ यात्रियों को पकोड़े बेचा करता था।
उनकी शादी गुजरात की कोकिलाबेन से हुई थी। उनका दो पुत्र मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी हुए और दो पुत्रियां नीना कोठारी और दीप्ति सल्गाओकर हुई।
व्यवसाय में असफलता और व्यवसायिक ज्ञान:–
धीरूभाई अंबानी ने अपने परिवार के लिए सबसे पहले फल और नाश्ता बेचने का काम किया। लेकिन कुछ खास मुनाफा नहीं होने के कारण अपने गांव के पास धार्मिक स्थलों पर पकोड़े बेचे। लेकिन साल में कुछ समय तक ही पर्यटक घूमने आते थे जिसके कारण यह भी नहीं चल पाया। फिर यहां भी इस काम को बंद करना पड़ा और अपने पिता की सलाह पर उन्होंने नौकरी ज्वाइन की।
उन्होंने सेल कंपनी के पेट्रोल पंप पर अपनी पहली नौकरी किया, करीब 2 साल तक नौकरी किया। उसी कंपनी में अपनी कार्यकुशलता और योग्यता के बल पर मैनेजर का काम किया। हालांकि नौकरी करने के समय भी वे बिजनेस करने के लिए अवसर तलाशते रहते थे। इसी जुनून ने उन्हें दुनिया के सबसे सफल बिजनेसमैन बना दिया। जब वे सेल कंपनी के पेट्रोल पंप पर ₹300 महीने पर नौकरी करते थे। वहां काम करने वाले सभी कर्मचारियों को 25 पैसे की चाय दी जाती थी। लेकिन वो एक रुपए की चाय पीने बड़े रेस्टोरेंट में जाते थे, जहां चाय पीने बड़े बड़े व्यवसाई आते थे। ताकि वे व्यवसाय करने के बारे में सीख सकें। इसी तरह वे अपनी तरीकों से व्यवसाय करने के बारे में सीखा था, और फिर व्यवसाई की आईडिया लेकर व्यवसाय में उतरा था।
भाई रमणीक की मदद से यमन में नौकरी करने गए। उन्होंने यमन में प्रचलित चांदी के सिक्कों को गलाना लंदन की एक कंपनी में करनी शुरू कर दी। क्योंकि सिक्कों की चांदी का मूल्य सिखों के मूल्य से अधिक थी। यह बात जब तक यमन सरकार तक पहुंची तब तक धीरूभाई अंबानी अच्छे लाभ कमा चुके थे। जब यमन की आजादी के लिए आंदोलन की शुरुआत हुई। तब यमन से भारतीयों को अपनी नौकरी छोड़कर भारत लौटना पड़ा।
रिलायंस इंडस्ट्रीज की स्थापना:—
धीरूभाई अंबानी भारत लौट कर व्यवसाय करना चाहता था। लेकिन एक नया व्यवसाय खोलने के लिए पूंजी की आवश्यकता थी। और धीरू भाई के पास बिजनेस शुरू करने के लिए इतना पूंजी नहीं थी। फिर उन्होंने अपने चचेरे भाई (चंपकलाल दमानी) के साथ पॉलिस्टर धागे और मसालों की खरीद बिक्री के लिए मात्र 15000रूपये से रिलायंस वाणिज्यिक निगम(Relince Commercial Corporation) की शुरुआत की।
रिलायंस वाणिज्यिक निगम का पहला कार्यालय मस्जिद बंदर के नर्सीनाथ सड़क के नजदीक स्थापित किया था। जहां पर सीमित मात्रा में वस्तुएं उपलब्ध था और उनके मदद के लिए 2 सहायक थे। धीरूभाई अंबानी और चंपकलाल दमानी के विचार ना मेल खाने के कारण 1965 में खत्म हो गई। चंपकलाल दमानी एक सतर्क व्यवसाई थे। और धागे के फैक्ट्रियों/भंडारों के निर्माण में विश्वास नहीं रखते थे। किंतु धीरूभाई अंबानी जोखिम लेने के रूप में जाने जाते थे। वे मानते थे कि मूल्य वृद्धि की आशा रखते हुए भंडारों का निर्माण इस्टेट में किया जाना चाहिए। जिससे लाभ कमाया जाए। इन्हीं कारणों से उनकी यह साझेदारी समाप्त हो गई।
रिलायंस टेक्सटाइल्स:–
वस्त्र व्यवसाय में अच्छी ज्ञान बोध होने के कारण, धीरुभाई ने 1966 में अहमदाबाद, नैरोड़ा(Naroda) में कपड़ा मिल की स्थापना की। पॉलिस्टर के रेशों/सुतों का इस्तेमाल कर कपड़ों का निर्माण किया गया। धीरूभाई ने विमल ब्रांड की शुरुआत की जो की उनके बड़े भाई रमणीकलाल अंबानी के पुत्र विमल अंबानी के नाम पर रखा गया था। “विमल” के नाम को भारत के अंदुरूनी इलाकों में प्रचार–प्रसार ने एक घरेलू नाम बना दिया। खुदरा विक्रेता की शुरुआत हुई और केवल “विमल” ब्रांड के कपड़ा बेचने लगे। जब विश्व बैंक के एक तकनीकी मंडल ने 1975 में रिलायंस टेक्सटाइल का निरक्षण किया तो उस समय में विकसित देशों के मानकों से भी उत्कृष्ट माना गया। फिर धीरूभाई अंबानी ने 1980 में पॉलिस्टर फिलामेंट यार्न निर्माण का लाइसेंस ले लिया। इसके बाद लगातार व्यवसाय में सफलता प्राप्त करते रहें। धीरूभाई अंबानी ने ही 1977ई० में प्रथम बार भारत में सामान्य शेयर को प्रारंभ किया था। इसमें भारत के विभिन्न क्षेत्रों के 58,000 से ज्यादा लोग उनके कंपनी रिलायंस के आईपीओ (IPO) में निवेश कर सदस्यता लीं।
उन्होंने गुजरात के लोगों को यह आश्वासन दिया कि उनकी रिलायंस कंपनी के शेयर धारक होने से उन्हें लाभ ही मिलेगा। 1980 तक अंबानी की कुल राशि को 1 बिलियन रुपया तक आंका गया। धीरुभाई ने अपने कार्यकाल में व्यवसाय को प्रमुख विशेषज्ञता के रूप में। पेट्रोरसायन, दूरसंचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, बिजली, कपड़ा, टेक्सटाइल, मूलभूत सुविधाओं की सेवा(Infrastructure), पूंजी बाजार(Capital–Market), और प्रचालन तंत्र (Logistics) इत्यादि को प्रारंभ किया।
मृत्यु:—
धीरुभाई अंबानी एक बड़े सदमे के दौरान मुंबई के ब्रेंच कैंडी अस्पताल में 24 जून 2002 को भर्ती किया गया था। उन्होंने 6 जुलाई 2002 रात के लगभग 11:50 तक अपनी अंतिम सांसे लीं। और 7 जुलाई 2002 को मुंबई के चंदनवाड़ी शवदाहगृह में करीब शाम के 4:30 बजे अंतिम संस्कार किया गया। इस महान व्यवशायी के आदर लिए मुंबई टेक्सटाइल मार्चेट्स ने 8 जुलाई 2002 को बाजार बंद रखने का फैसला किया।
उनके प्रसिद्ध कथन:–
“मैं न सुनने का आदि नहीं। मैं ना शब्द के लिए बहरा हूं।"
“बड़ा सोचो, जल्दी सोचो, आगे की सोचो। विचार किसी की बपौती नहीं, विचार पर किसी का एकाधिकार नहीं।"
“हमारे सपने हमेशा विशाल होने चाहिए, हमारी ख्वाहिशें हमेशा ऊँची। हमारी आकांक्षाएं हमेशा ऊंची, हमारी प्रतिबद्धता हमेशा गहरी और प्रयास महान होने चाहिए।"
“मुनाफा/लाभ बनाने के लिए आपको आमंत्रण की आवश्यकता नहीं।"
“अगर आप दृढ़ता और पूर्णता के साथ काम करें, तो कामयाबी खुद आपके कदम चूमेगी, सफलता आपका अनुसरण करेंगी।"
“मुश्किलों में भी अपने लक्ष्यों को ढूंढिये और आपदाओं को अवसरों/मौकों में तब्दील कीजिए बदलिए।"
“युवाओं को उचित माहौल दीजिए उन्हें प्रेरित कीजिए, उन्हें जो जरूरत है उसकी मदद कीजिए। प्रत्येक में अनंत ऊर्जा का स्त्रोत हैं। वे फल देंगे वे देंगे।"
“मेरे भूत वर्तमान और भविष्य में एक समान पहलू हैं, संबंध और आस्था ये हमारे विकास की नींव हैं।"
धीरुभाई अंबानी के जीवनी को पढ़ कर आपको कैसा लगा हमें कॉमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं। और अपने दोस्तों को यह जानकारी पहुंचा सकते हैं। आप सभी को यह पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद।

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