भारती राष्ट्रीय ध्वज कई चरणों के बाद स्वरूप में आया। पहला राष्ट्रीय ध्वज वर्ष 1906 में बनाया गया था। स्वतंत्रता आंदोलन के क्रम में चर्चाओं और विचार -विमर्श के बाद हमारी तिरंगा को अपनाया गया।
वंदेमातरम् ध्वज —1906
अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान भारत का कोई ध्वज नहीं था। 1906 में पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला झंडे को कोलकाता के पारसी बगान चौक पर फहराया गया था। यह स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक था।
बर्लिन कमेटी ध्वज–1907
पहले ध्वज में कुछ बदलाव किए गए। मैडम भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 को जर्मनी के स्टेटगर्ट में दूसरी बार भारतीय झंडा फहराया था। इस झंडे को हेमचंद दास ने बनाया था।
होम रुल ध्वज–1917
होम रुल आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक और ऐनी बेसेंट ने एक अलग ध्वज फहराया था। ये ध्वज पहले के तीन ध्वज से अलग थे, इसमें ब्रिटिश ध्वज को भी दिखाया गया था।
कांग्रेस ध्वज–1921
विजयवाड़ा में कांग्रेस के एक अधिवेशन में, पिंगली वैंकेया ने महात्मा गांधी को अपने ध्वज का डिजाइन दिखाया। इस ध्वज में चरखा विकास, स्वालंबन और आम आदमी का प्रतीक था।
स्वराज ध्वज–1931
साल 1931 को कराची में सात सदस्य ध्वज कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी ने झंडे को नया डिज़ाइन और रंग दिया। लाल की जगह केसरिया रंग ने ली। साथ ही 1921 में बने ध्वज से अलग रंगों का स्थान भी बदल दिया गया। यह वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज के समान दिख रहा था।
स्वतंत्र भारतीय ध्वज–1947
संविधान सभा द्वारा चरखा को अशोक चक्र से बदल दिया गया। इस बदलाब की डिज़ाइन सुरैया तैयबजी ने की। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया।
राष्ट्रीय ध्वज के निर्माता–
हमारा वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज पिंगली वैंकेया के वर्ष 1921 में बनाए डिजाइन पर आधारित हैं। पिंगली स्वतंत्रता सेनानी थे, वह लेखक, भूविज्ञानी, शिक्षाविद, कृषक और बहुभाषी भी थे। आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम् में जन्मे वैंकेया 19 वर्ष की उम्र में ब्रिटिश आर्मी के सेनानायक बन गए। बाद में दक्षिण अफ्रीका में एंग्लो बोअर युद्ध के दौरान
पिंगली वैंकेया की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। उसके बाद उसमें बदलाब आया। और वह स्वदेश वापस आ गये। उन्होंने ब्रिटिशों के गुलामी के खिलाफ आवाज उठाते हुए। स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। 45 वर्ष के उम्र में उन्होंने तिरंगा का डिजाइन किया था।







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